श्री कृष्ण राधेरानी
पांवों में पायल छनके
अधरों पर मधुर बांसुरी बजे
नखराली राधिका जो कनखी नयन तके
साँवरे पिया की मुस्कान खिले।।।
छविमान श्री कृष्ण राधिका रानी के
अनुपम जोड़ी सजे, मन मोहे
फबे फबे ना दूसर इस जग में
और मुझे न कुछ भाये ।।।
अनिमेष निहारे एक दूजे को
मंद मंद हर्षित हो वे मुस्काये
प्रियतम कि अपलक छवि निहार के
इतर न मुझे कुछ सुहाये।।।
ब्रज भूमि पर रूप अनेक धरे
श्री जो महा रासलीला रचाने
हर एक एक गोपियन के
मन बसिया, रसिया वे कहलाये।।।
तारों भरी चांदनी रात
शरद पूनम की अधरतिया
अमृत रस बरसाए
उसकी आभा ने श्री कृष्ण
महोत्सव में चार चांद लगाए।।।
बजाऊँ ढोलक, झांझर, मृदंग वादन करूँ
अपने श्री कृष्ण राधिका के लिए मनमोहक गायन करूँ
सुन बांसुरिया, संग संग पैजनिया की थाप धरूँ
मैं भी मतवारी होकर मनमोहना संग नृत्य करूँ।।।
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जय श्री कृष्ण राधेरानी की
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